“जिंदगीएक बेचैन हवा है, जाने किधर से आती है, जाने किधर को जाती है। इस जिंदगी पर हमारा कण्ट्रोल नहीं है, इसका अगला पल हमें बना सकता है और गिरा भी सकता है। आपका कल शायद वो दिन हो, जो आपकी जिंदगी का रुख ही बदल दे लेकिन इस बदलाव को नकारात्मकता से देखने की बजाय उसे समझने की कोशिश करे की यह कुछ नहीं है, बस जिंदगी तुम्हे एक मौका दे रही है फिर से विनर बनने का ।“ यह कहना है देश की पहली महिला ब्लेड रनर किरण कनौजिया का जो हादसे में अपना एक पैर गवाने के ले बाद भी जिन्होंने अनेक रिकॉर्ड अपने नाम किये है और कई मेडल जीते है(Success Story)।
Woman Success Story –
बिजली का बिल ना भर पाने के कारण, स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर की पढाई
- हरियाणा के फरीदाबाद में एक बहुत साधारण से घर में किरण का जन्म हुआ।
- किरण से छोटे उनके दो भाई बहन थे, उनके माता और पिता कपड़ो पर प्रेस करके 2-3 हजार रूपए महीना कमाते थे।
- उन्हें अपनी जिंदगी में छोटो-छोटी चीजों के लिए संघर्ष करना पड़ता था।
- जैसे- बिजली का बिल भरने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते थे, तो वह स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ती थी।
- उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण एक साधारण से स्कूल से उन्होंने शिक्षा ली।
कड़ी मेहनत के बाद मिली ड्रीम कंपनी में जॉब
- किरण बताती है की कक्षा 8 के बाद उन्होंने निजी स्कूल में दाखिला लिया।
- वहा वह बड़े फॅमिली के बच्चो के साथ खुद को असहज महसूस करती थी।
- 12 वी तक उन्होंने खूब मेहनत की, जिसके कारण उन्हें एक अच्छी यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया।
- पहले वर्ष की फीस 22 हजार रूपए थी, उनके माता पिता के पास इतने पैसे नहीं थे फिर भी उन्होंने पैसो का इन्तजाम किया क्युकी वे चाहते थे की किरण किसी मुकाम तक पहुचे।
- किरण ने प्रथम वर्ष में खूब मेहनत की और पुरे कॉलेज में टॉप किया, जिसके कारण उन्हें बाकी के कोर्स के लिए स्कॉलरशिप मिल गयी।
- इतना ही नहीं पढाई के बाद उन्हें उनकी ड्रीम कंपनी में जॉब भी मिल गयी और उनके हालात सुधरने लगे।
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हादसे ने जिंदगी ही बदल दी
- किरण का 25वा जन्मदिन था, लेकिन उनके जन्मदिन के एक दिन पहले की कुछ ऐसा हुआ की उनकी पूरी जिंदगी बदल गयी।
- वह रोज की तरह ही रात की ट्रेन से घर लौट रही थी, वो गेट के पास खड़ी थी।
- तभी 2 बदमाश अचानक उनका पर्स छिनकर भागने लगे, उनके धक्के के कारण वो भी कोच से बाहर गिर पड़ी।
- उनका पैर ट्रैक्स में फस गया, किसी ने चेन खिची तब ट्रेन रुकी।
- लोग उन्हें हॉस्पिटल ले गए, जहा डॉक्टर्स ने उन्हें कहा की उनका पैर ठीक नहीं किया जा सकता उसे काटना पडेगा, इससे वह पूरी तरह टूट गयी।
पिता ने बढ़ाई हिम्मत
- एक महीने तक बिस्तर पर रहने के बाद उन्हें कृत्रिम पैर लगाया गया।
- किरण पूरी तरह टूट चुकी थी, क्युकी एक पैर के सहारे जीवन यात्रा करना काफी कठिन है।
- उनके सपने टूट चुके थे, लेकिन उनके पिता ने उन्हें हिम्मत दी।
- उदाहरण दिया की सुधा चंद्रन, एक टांग ना होने पर भी सफल है।
- डॉक्टर्स ने उन्हें कहा की तुम चल पाओगी लेकिन दौड़ नहीं सकती।
एक पैर खोने के बाद भी नहीं मानी हार
- 2012 में उन्होंने फिर से नौकरी शुरू की और सामान्य जिंदगी जीने की कोशिश करने लगी।
- उन्हें उनके ऑफिस और सहयोगियों का काफी सपोर्ट मिला।
- फिर एक दिन उनकी मुलाकात मोहना गाँधी से हुयी, उन्होंने किरण से पूछा की तुम बचपन से इतना भागती रही हो फिर से दौड़ने का इरादा है क्या ?
- किरण ने हस्ते हुए कहा हाँ, लेकिन अब संभव नहीं।
- फिर मोहना गांधी ने उनका फूट निकालकर ब्लेड फिक्स कर दी।
- फिर किरण ने खूब प्रैक्टिस की अपना एक अंग खोकर भी उन्होंने जीवन के अलग पहलुओ को जाना।
बनी पहली महिला ब्लेड रनर (Success Story)
- किरण चार महीने में 10 किलोमीटर और 6 महीने में 21 किलोमीटर दौड़ी।
- उन्होंने हैदराबाद के एक मैराथन में भाग लिया और 21 किलोमीटर तक दौड़कर एक नया रिकॉर्ड बनाया।
- देश की पहली महिला ब्लेड रनर का ख़िताब अपने नाम कर लिया।
- किरण अभी तक 6 हाफ मेराथन के रिकॉर्ड अपने नाम कर चुकी है।
- मीडिया में उनकी खबरे छपने लगी लोग उन्हें जानने लगे, तो एक पैर नहीं होने की शिकायत भी दूर होने लगी।
किरण सबके लिए एक उदाहरण है की अगर आप में साहस और धैर्य है तो आप असंभव कार्य को भी संभव बना सकते हो।
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