Vaishakh Purnima Vrat Katha | वैशाख पूर्णिमा व्रत की पावन कथा

द्वापर युग में यशोदा मां के आग्रह से श्री कृष्ण ने एक ऐसे व्रत की महिमा (Vaishakh Purnima Vrat Katha) का गायन किया जिसको करने से मनुष्यों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है यह अचल सौभाग्यदायक होता है लेकिन कथा का लाभ भी तब ही मिलता है जब कथा पूर्ण हो इसलिए इसे थोड़ा समय निकाल कर पूरा जरुर पढ़े


आज के इस आर्टिकल में आपके लिए लाये है वैशाख पूर्णिमा की व्रत कथा। जो की थोड़ी-सी बड़ी जरुर है परन्तु व्रत तभी पूर्ण होता है जब उससे सम्बंधित कथा पढ़ी व सुनी जाए लेकिन कथा का लाभ भी तब ही मिलता है जब कथा पूर्ण हो इसलिए इसे थोड़ा समय निकाल कर पूरा जरुर पढ़े। यह वैशाख माह की सबसे शुभफलदायी कथा (Vaishakh Purnima Vrat Katha) है।

Vaishakh Purnima Vrat Katha –

चलिए शुरू करते है तो एक बार –

द्वापर युग में यशोदा मां के आग्रह से श्री कृष्ण ने एक ऐसे व्रत की महिमा (Vaishakh Purnima Vrat Katha) का गायन किया जिसको करने से मनुष्यों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। यह अचल सौभाग्यदायक होती है। यशोदा जी ने पूछा यह व्रत किसने किया है।

श्री कृष्ण बोले..

मृत्युलोंक में ही एक बहुत सी सुन्दर व रत्नों से पूर्ण एक नगरी है जिसका नाम कातिका है जिनके राजा का नाम चन्द्रहास है। वंहा पर धनेश्वर नामक ब्राह्मण रहता था जिसकी पत्नी का नाम रूपवती था, जो की बहुत सुन्दर थी। उनके घर में धन-वैभव की कोई कमी नहीं थी परन्तु उनकी संतान नहीं थी। इसके कारण सबकुछ होते हुए भी वे सुखी नहीं थे। (Pooranmasi vrat katha in hindi)

एक बार योगी उनके नगर में आया जो की उस ब्राहमण के घर को छोड़कर अन्य घरों से भिक्षा लेकर भोजन करता था। एक दिन रूपवती व धनेश्वर ने उन्हें भिक्षा दी पर उन्होंने नहीं ली व किसी अन्य ब्राह्मण से भिक्षा लेकर वह गंगा के किनारे बैठकर खा रहे थे। अपनी भिक्षा के अपमान से निराश होकर उसने उस योगी से पूछा की वह सभी के घर से भिक्षा लेता है पर उनके घर से क्यों नहीं। (Vaisakhi purnima vrat kahani)

योगी ने कहा की..

निःसंतान व्यक्ति के घर से प्राप्त भीख पतितों के बराबर होती है जो ऐसा अन्न खाता है वह खुद भी पतित हो जाता है इसलिए वह ऐसे घर से भिक्षा नहीं लेता।

यह सुन धनेश्वर दुःख के मारे योगी के चरणों में गिर गया और कहने लगा है, हे महत्मा.. मुझे कृपया करके पुत्र प्राप्ति के लिए कोई उपाय बताये। मेरे घर में सबकुछ है किसी चीज की कमी नहीं है बस संतान न होने का गम मुझे बहुत परेशान करता है। उसकी इतनी दिन हालत देखकर..

योगी ने कहा की..

उन्हें चंडी माँ की आराधना करना चाहिए। वह घर आया और अपनी पत्नी को उसने पूरी बात बताई और वह वन की तरफ चला गया। वंहा जाकर उसने चंडी की आराधना प्रारंभ की साथ व्रत भी धारण किया। उसकी आराधना करते देख माता चंडी ने सोलहवें दिन उसे सपने में दर्शन दिए और कहा की तुम्हारे यंहा पुत्र तो होगा लेकिन 16 वर्ष की आयु में ही उसका निधन हो जाएगा। यदि वह दोनों स्त्री और पुरुष मिलकर 32 पूर्णिमासियों का व्रत करे और उसका विधिपूर्वक पालन करे तो उसकी आयु दीर्घ हो सकती है।

सवेरा होने पर इस स्थान के पास में आम का एक पेड़ दिखाई देगा उस पेड़ पर चढ़कर फलों को तोड़कर अपने घर ले जाना और इसे अपनी पत्नी को दे देना तथा उसे सारी बात बताना व उससे कहना की ऋतू स्नान करने के बाद श्री शिव शंकर का ध्यान धरकर इस फल को खा लेना वह भगवान की कृपा से जल्द ही एक सुन्दर पुत्र को जन्म देगी।

सुबह जैसे ही वह ब्राहमण जागा उसने देखा की पास में ही एक आम का वृक्ष लगा हुआ था और उसपर एक सुन्दर आम का फल भी था। उसने मुश्किलों से उस आम को तोडा और घर आकर अपनी स्त्री को दे दिया। अपने पति के कहे अनुसार उस स्त्री ने आम फल को खा लिया जिसके फलस्वरूप उसने जल्द ही गर्भधारण किया। (Vaishakh Purnima Vrat Katha)

देवी की कृपा से..

एक अत्यंत सुन्दर पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम देविदास रखा गया। 16 वर्ष के होते ही उसके माता पिता को चिंता सताने लगी की कहीं इस वर्ष उसकी मृत्यु न हो जाएँ और यदि ऐसा उनके आखों के सामने हुआ तो वे कैसे सहन कर पाएँगे। यह सोच उन्होंने निर्णय लिया की देविदास को वे उसे विद्या प्राप्ति के लिए काशी भेजेंगे। उन्होंने देविदास के मामा को बुलाया और कहा हम चाहते है की देविदास काशी में एक वर्ष के लिए जाकर विद्या अर्जन करे और तुम उसके साथ जाओं व एक वर्ष बाद उसे वापस लें आना परन्तु इस बीच उसे कभी कहीं अकेले न छोड़ना।

उन्होंने सारा प्रबंध किया और देविदास को उसके मामा के साथ काशी भेज दिया लेकिन उसके मामा को यह बात नहीं बताई की हो सकता है यह वर्ष देविदास के जीवन का आखरी वर्ष हो। इधर देविदास के माता पिता, माता चंडी की आज्ञा अनुसार 32 पूर्णिमासियों के व्रत को पूरा करने लगे। (purnima vrat katha)

कुछ समय बाद …

जब दोनों मामा-भांजा एक रात्रि में विचरण करते हुए थक गए तो उन्होंने गाँव में ही रुकने का तय किया। वंहा पर एक ब्राहमण की बेटी का विवाह होने वाला था परन्तु देविदास के सौन्दर्य को देखकर लड़की देविदास से विवाह के लिए कहती है जिसे सुन देवीदास अपने आयु में बारे उसे बताता है लेकिन लड़की न मानी व उसने कहा जो गति उसकी होगी वही मेरी होगी। इस तरह दोनों का विवाह पूर्ण हुआ। (vaisakh purnima vrat mahima)

चूँकि देविदास को विद्या प्राप्ति की लिए भेजा गया तो वह अपनी पत्नी से विदा लेकर जाता है और कह के जाता है की वह जल्द उन्हें अपने साथ लें जाएँगा। तभी उसकी आयु को लेकर चिंतित उसकी पत्नी को देविदास ने एक पुष्प वाटिका की तरफ इशारा करते हुए कहा की जिस दिन यह वाटिका सुख जाये समझ जाना मेरा अंत हो गया है वहीँ जिस दिन यह अति हरी-भरी दिखने लगे समझ जाना मेरे जीवन पर आये संकट के बादल हट गए है।

इसके बाद श्री कृष्ण कहते है..

देवीदास इतना कह काशी के लिए रवाना हो गया। कुछ समय बिता जैसे ही उसके जीवन काअंतिम क्षण निकट आया काल एक सर्प का रूप धर कर उसे डसने के आगे बढ़ने लगा परन्तु व्रत के प्रभाव से उसे काट नहीं पाया। इसके बाद काल खुद अपने असल रूप में आकर उसके प्राण को हरने लागा जिससे देविदास बेहोश होकर गिर गया। तभी माँ पार्वती शिव-शंकर के साथ वंहा पहुंची। माता पार्वती ने उसे देखा और शिव शंकर से प्रार्थना करी की इसकी माता ने पहले ही इसकी दीर्घायु होने के लिए 32 पूर्णमासियों का व्रत पूर्ण किया था और व्रत के महत्म का नाश न हो इसलिए प्रभु इसे प्राणदान दे। इसके बाद शिव जी ने उसे जीवित किया।

इस तरह से देवीदास फिर से जीवित व स्वस्थ हो गया। उधर उसकी पत्नी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। उसने पुष्प वाटिका के तरफ देखा तो जो पुष्प वाटिका सूखने लगी थी वह एकाएक हरी-भरी हो उठी जिससे उसे इस बात का यकीन हो गया की देविदास जीवित है। कुछ समय बाद देविदास अपनी पत्नी के पास लौटा और उसे व अपने मामा को लेकर अपने माता-पिता के पास वापस आ गया। अपने लाल को जीवित देख माता-पिता बहुत खुश थे और इस तरह धनेश्वर और उसकी पत्नी ने अपने पुत्र व पुत्रवधू के आगमन पर बहतु बड़े उत्सव का आयोजन किया। तब..

श्री कृष्ण आगे कहते है मां..

धनेश्वर के किये गए 32 पूर्णमासियों व्रत के फल स्वरुप (Vaishakh Purnima Vrat Katha) ही उसका पुत्र दीर्घायु हुआ और जो भी व्यक्ति इस व्रत को धारण करता है उसके जन्म-जन्मान्तर के पापों का नाश भी होता है व उसे मनवांछित फलों की प्राप्ति भी होती है।


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