राखी का उपयोग भारत में ऐतिहासिक काल से दोस्ती और भाईचारे को दर्शाने किया जाता आ रहा है केवल एक ही नहीं कई ऐसी कथाएं है जो की सदियों से राखी के महत्त्व का बखान करती आ रही है।
भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लगने पर द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़ कर उनके घाव पर बाँध दिया था जिसके बदले उन्होंने द्रौपदी की रक्षा का वादा किया और उसे चीरहरण पर आकर निभाया भी था।
जब पन्ना मुगलों के बीच में घिर गई थी तो उसने दूसरी राजपूत सियासत के राजा को राखी भेजीं थी जिसे पाकर राजपूतों ने मुगलों पर हमला कर दिया था और इस तरह राखी का फर्ज अदा हुआ था
महारानी कर्मवती ने मुगलों के बादशाह हुमायूँ को रक्षा सूत्र भेजा था जिसे हुमायूँ द्वारा स्वीकार किया गया था। राखी के फर्ज को अदा करने के लिए उन्होंने गुजरात के शासक से लड़ाई भी लड़ी थी।
बारह वर्ष तक युद्ध में जब देवताओं को हार मिली, तब इन्द्राणी ने मन्त्रों से उच्चारित रक्षा कवच इंद्र के दाहिनी कलाई पर बांधा जिसके प्रभाव से राक्षसों की हार हुई और देवताओं को जीत मिली।