Rishi Panchami 2022 | जाने ऋषि पंचमी महत्त्व, व्रत कथा, पूजा विधि व मुहूर्त

Rishi Panchami 2022 – ऋषि पंचमी हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक शुभ दिन है जो की भारतीयों सप्त ऋषियों को समर्पित है। जानते है इस दिन की पूजा विधि (Rishi Panchami Puja Vidhi), महत्त्व (Rishi Panchami Importance), कथा (Rishi Panchami Katha) व क्यों जरुरी है इस व्रत का पालन..


हरतालिका तीज (या तिज) के ही तरह ऋषि पंचमी का व्रत भी हिंदू महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण व्रत है यह भाद्रपद के हिंदू महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि मतलब (पांचवे दिन) को मनाया जाता है। ऋषि पंचमी हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक शुभ दिन है जो की भारतीयों सप्त ऋषियों को समर्पित है। इस दिन को ऋषियों के प्रतीक के रूप में माना जाता है यह हरतालिका तीज के एक दिन बाद मनाया जाता है व इससे पहले दिन गणेश चतुर्थी का पर्व होता है।

हिन्दू मतों के अनुसार ऋषि, मुनि अपने ज्ञान व बुद्धि से अपने भक्तों को शिक्षित किया करते थे जिससे हर मनुष्य जीवन में सही मार्ग पर चले। अपने ज्ञान का उचित उपयोग करे, मानवता व दान-धर्म को अपनाए। यह व्रत उन्ही के सम्मान में रखा जाता है।

ऋषि पंचमी व्रत व पूजन सभी महिला व पुरुषों द्वारा किया जा सकता है। इस दिन विधि विधान से सप्त ऋषियों के पूजन से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। वैसे इस व्रत को अधिकतर महिलाऐं धारण करती है। चुकीं वे अपने मासिक धर्म में कई ऐसे भूलवश कर्म कर जाती है (जैसे – वस्तुओं को स्पर्श करना, भोजन-पानी को हाथ लगा देना आदि) जिसका उन्हें रजस्वला दोष लगता है, इन्ही पापकर्मों के माफ़ी के लिए औरतों द्वारा विशेषकर यह व्रत धारण किया जाता है। हम सभी जीव इन्ही सप्त ऋषियों की संताने है इनके पूजन से सभी दोषों की मुक्ति मिलती है।

Rishi Panchami 2022 Date | ऋषि पंचमी तिथि 2022

इस वर्ष 01 सितम्बर 2022, गुरुवार को ऋषि पंचमी व्रत का पालन किया जाएगा।

Rishi Panchami 2022 Shubh Muhurat | ऋषि पंचमी 2022 मुहूर्त

ऋषि पंचमी तिथि आरम्भ – 31 अगस्त 2022 सुबह 03:22

ऋषि पंचमी तिथि आरम्भ – 1 सितम्बर 2022 दोपहर 02:49

पूजा मुहूर्त –

1 सितम्बर 2022 सुबह 11 बजकर 05 मिनट से लेकर 01 बजकर 37 मिनट तक।

Rishi Panchami Puja Vidhi | ऋषि पंचमी पूजा विधि

  • ऋषि पंचमी के दिन व्रत किया जाता है तो इस दिन सबसे पहले जल्दी उठे।
  • शुद्ध जल से स्नान करे व स्वच्छ नये वस्त्र धारण करे।
  • अगर हो सके तो गाय के गोबर से पूजा स्थान को लीप लें।
  • पूजा स्थल को गंगाजल का छिडकाव करके शुद्ध कर लें।
  • इसके बाद मां अरुंधती व सप्त ऋषियों की प्रतिमा बनाये।
  • प्रतिमा बनाते जाए व मन में उनका नाम स्मरण करते जाए।
  • इस प्रतिमा को पूजा स्थान पर स्थापित करें।
  • उसके बाद कलश स्थापित करें और उस पर हल्दी, कुमकुम, व चंदन का टिका लगायें।
  • इसके बाद ताजे पुष्प अर्पित करें व अक्षत चढ़ाये।
  • सप्तऋषियों के मन्त्रों का जाप करे।
  • अंत में उनके व्रत की कथा को पढ़े या श्रवण करे।

मंत्र

‘कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः’॥

Rituals | ऋषि पंचमी धार्मिक क्रियाएं

  • ऋषि पंचमी पर सप्त ऋषियों (ऋषि कश्यप, ऋषि अत्रि, ऋषि भारद्वाज, ऋषि विश्वमित्र, ऋषि गौतम, ऋषि जमदग्नि व ऋषि वशिष्ट) का पूजन किया जाता है।
  • महिलाओं द्वारा इस दिन व्रत धारण किया जाता है जिससे उन्हें रजस्वला दोषों से मुक्ति मिलती है।
  • इस दिन महिलाएं दही व समा चावल (मोरधन) का सेवन करती है इस दिन व्रत में नमक का उपयोग वर्जित होता है। दिन में केवल एक बार ही भोजन किया जाता है।
  • ऋषि पंचमी के दिन पूजन का कलश व पूजन समाग्री और कुछ भेंट ब्राह्मण को दान में दिया जाता है और ब्राहमणों को भोजन करवाया जाता है।
  • इस दिन विभिन्न जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है जिनसे दातों की व शरीर के अंगों के सफाई की जाती है।
  • एक विशेष जड़ी-बूटी जिसको कई स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे लटजीरा, अपामार्ग, चिरचिटा। इन जड़ी-बूटियों के डंडियों से इस दिन स्नान किया जाता है। (Rishi Panchami 2022)

Rishi Panchami Vrat Katha – ऋषि पंचमी व्रत कथा

सतयुग के समय श्येंजित नामक एक राजा था। उसके राज्य में एक सुमित्र नामक विद्वान् ब्राहमण रहता था। सुमित्र खेती किया करता था। उसकी पत्नी थी जिसका नाम जयश्री था वो भी बहुत पतिव्रता था किन्तु एक दिन रजस्वला होते हुए भी उसने घर के सम्पूर्ण कार्यों को किया। भोजन भी बनाया और अपने पति की इस अवस्था में सेवा भी की। इस तरह से उसे रजस्वला दोष लग गया व अगले जन्म में उन्हें इस पाप का फल भुगतना पड़ा। उन्हें इस योनि के बाद स्त्री को कुतिया व पति को बैल की योनि प्राप्त हुए परन्तु पहले जन्म में किये गए पुण्यों के बल पर उनका ज्ञान बना रहा।

संयोग से वे दोनों अपने ही पुत्र और पुत्रवधू के साथ रह रहे थे। उनके पुत्र का नाम सुमति था। पितृपक्ष में उसने अपने माता-पिता का श्राद्ध करने का तय किया जिसके लिए उसने अपनी पत्नी से खीर बनाने के लिए कहा व ब्राह्मणों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। सुमति की पत्नी ने खीर बनाकर रख दी और वह अपने कामों में लग गई लेकिन एक सांप ने उस खीर को जहरीला कर दिया।

यह सब उस कुतिया ने देख लिया जो की उसकी सास थी उस कुतिया ने विचार किया की यदि इस खीर को ब्राह्मण खायेंगे तो जहर के कारण उनकी मृत्यु हो जाएगी और मेरे पुत्र को ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा।

ऐसा सोच कर उसने उस खीर को जाकर झुटा कर दिया। यह सब उसकी पुत्रबहू ने देख लिया। इस पर उसे बहुत क्रोध आया और उसने चूल्हे की जलती लकड़ी से उस कुतिया की पिटाई कर दी और उसे दिन भर खाने को भी नहीं दिया। रात में कुतिया ने बैल को पूरी बात बताई। बैल ने भी कहा आज मुझे भी सुबह से कुछ खाने को नहीं मिला है व मुझसे दिनभर खेत में काम भी करवाया गया। हमारे पुत्र ने हमारे लिए ही श्राद्ध किया है और हमें ही दिन भर से कुछ खाने को नहीं दिया। इस तरह हम दोनों के भूखे रहने से इनका श्रद्धा करना तो पूरी तरह से व्यर्थ है। यह सारी बात सुमति दरवाजे पर खड़ा सुन रहा था। उसे पशुओं की बोली समझ आती थी उसे यह सब जानकर बहुत दुःख हुआ की उसके माता-पिता ऐसी योनियों में पड़े है।

वह काफी परेशान हुआ और एक ऋषि के आश्रम पहुंचा व उन्हें सारी बात बताई कि कैसे उनके माता-पिता पशुयोनी में पड़े कष्ट भोग रहे है। ऋषि ने अपने ध्यान के बल सारी बात जान ली। उसने सुमति को अपने पत्नी के साथ भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जिसे ऋषि पंचमी का व्रत कहा जाता है, वह करने के लिए बोला। उन ऋषि ने कहा की इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे माता-पिता के पापों का नाश होगा और उन्हें इस पशुयोनी से मुक्ति मिल जाएगी। यह सुन सुमति बहुत खुश हुआ। उसमे ऋषि पंचमी व्रत किया। विधि से पालन किया व उसके प्रभाव से उसके माता-पिता को इस कष्ट से मुक्ति प्राप्त हुई।

आपने जाना (Conclusion of This Article)

Rishi Panchami 2022 आज हमने जाना की ऋषि पंचमी का यह व्रत इतना पुण्यकारी क्यों माना जाता है व इस दिन कौन-से रीती रिवाजों से ऋषियों की पूजा करना चाहिए जिससे हमें उनका आशीवार्द मिल सके।

Frequently Asked Question –

ऋषि पंचमी का मतलब क्या होता है?

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी पड़ती है। सनातन धर्म में यह दिन सप्त ऋषियों को समर्पित माना गया है। इस दिन गंगा स्‍नान एवं दान देने का व‍िशेष महत्‍व होता है। मान्‍यता है क‍ि ऋषि पंचमी की कथा पढ़ने से जीवन के सारे कष्‍ट दूर हो जाते हैं और पापों से भी मुक्ति म‍िलती है।

ऋषि पंचमी के दिन क्या क्या खा सकते हैं?

जो महिलाएं ऋषि पंचमी का व्रत रखेंगी, वे सुबह-शाम दो समय फलाहार कर ही व्रत को पूर्ण करेंगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में हल से जुता हुआ कुछ भी नहीं खाते हैं। इस बात को ध्यान में रखकर ही व्रत किया जाएगा। वे केवल फल, मेवा व समा की खीर, मोरधान से बने व्यंजनों को खाकर व्रत रखेंगी।

ऋषि पंचमी के दिन क्या क्या खा सकते हैं?

जो महिलाएं ऋषि पंचमी का व्रत रखेंगी, वे सुबह-शाम दो समय फलाहार कर ही व्रत को पूर्ण करेंगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में हल से जुता हुआ कुछ भी नहीं खाते हैं। इस बात को ध्यान में रखकर ही व्रत किया जाएगा। वे केवल फल, मेवा व समां की खीर, मोरधान से बने व्यंजनों को खाकर व्रत रखेंगी।

ऋषि पंचमी का त्यौहार कैसे मनाया जाता है?

पूजन विधि प्रातःकाल नदी आदि में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन कर अपने घर में भूमि पर चौक बना कर सप्त ऋषियों की स्थापना करनी चाहिए। श्रद्धा पूर्वक सुगंध , पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से सप्तर्षियों का पूजन करें।

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